उसका भीगा हुआ चेहरा, गालो पर बूंद,
जैसे गुलाब की पंखुडियो पर ओस
बांहों में भर उसे मैंने कहा
नज़रे ना चुराओ मुझसे,
यह बुँदे आग को बुझा नहीं रही थी,
शौक़ीन थी वो बारिश की,
अक्सर तकलीफ देती थी,
हर साल बारिश उसकी याद साथ ले आती
उसकी नजरो को उठाकर मिलाना चाहा
वो हस पड़ी, मैं चाहता था उस ओस को चूमना
काटे भी लग सकते थे, हैरान नहीं होना चाहता,
पर मौसम ने साथ नहीं दिया, वो चली गयी |
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