मेरी परिकल्पना की दुनिया में आपका स्वागत है. यदि मेरी कल्पना में कोई सच दिखता है तो इसे मात्र एक सयोंग ना माना जाये...........

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कबूतर दाना चुग गया तो उस पेड़ को हसी क्यों आई 
जिसकी छाव  मैं बैठी बिल्ली नाकाम रही
उसी चुगने वाले दाने के मालिक को झपटने में,
मन की कसर तो इतनी सी थी की छाव न दू मैं उसे,
डालो को भेजा जा पकड़ उसे
मुझे पसंद हैं उसकी बहादुरी |
मुझे मत खाओ मैं तुम्हारी बहादुरी को कम कर दूंगा,
मेरे उन दोस्तों को तुम्हे ले जाना चाहिए
जो तुम्हारे दुश्मनों के मुह में ज़कड़े  हैं 
तब उन दोस्तों को भी गर्व होगा तुम्हारी ताकत बनने में, 
सुन के कबूतर ने दाना छोड़ दिया बैठ गया डाली पर,
बिल्ली को अपनी गर्माहट का अहसास करा दिया |

गौरव कुलकर्णी  17 sept2011


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टूटे हुए दिल से पूछो जीने का मरहम
ख़ामोशी से पूछो महकने का जीवन
जिंदगी क्यों प्यार से चलती हैं
पानी को अहसास नहीं होता पत्थर की मार का
उसे डर  नहीं होता  छिटो में उछलने का
क्योकि वो जनता हैं कि पत्थर डूब जायेगा
निगाह पैनी बनाने से कुछ न होगा
दिल को जोड़ने से ही ख़ुशी मिलेगी 
एहसान करो इतना कि समय समय पर झगड़ लिया करो 
मना के जिंदगी चलाना अच्छा लगता हैं |

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रोका तो क्या में रुक जाऊ
डर के कहा तक भागु 
फितरत बदलने में क्यों लगा हैं वो
हद तो तब हो गयी जब 
उसने मेरा हाथ पकड़ा,
सुन सुन के पक गया हु यह डायलग 
इस बार फिर से उसने यदि "हद" कहा 
तो हाथ पकडूँगा नहीं छाप दूंगा | 

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पता था वो देखेगी उन भूरी आँखों से ,
समंदर सा विशाल तेज़ था उसकी आँखों में
गाल बिछावट लेते उसके बालो ने 
जब मेरा ध्यान उसकी तरफ खीचा,
हाथ मेरे लेने गए उसे,
छु भी लिया था मैने उन्हें
सकपकाते रोका और अपने
कोमल हाथो से मुझे सबक दे डाला
आँख मार के भी भागो 
और ना भी  भाग सको तो 
उसका हाथ कभी खाली मत छोडो | 

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उसकी खुशबू का अहसास क्यों मुझे मजबूर करता हैं 
उसकी तन्हाई को भूलने में
फिक्र कि बादशाहत हैं वो  मेरे लिए
नसीब तो सिर्फ मेरे पास हैं
करीबी आँहो को मैं कब तक भरूँगा
इतना सोचना पसंद नहीं 
शायद ही करूँगा दोबारा उससे मैं अपने जूते प्यार 
का इज़हार या शायद इंतज़ार |
17sept2011
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