घेर लिया हैं मुझे उन चंचल ठंडी हवाओं ने,
जैसे कुछ याद दिलाना चाहती हो,
ठंडी सी, चुभती हुई शायद कुछ कहना चाहती हो,
इन हवाओं से मुझे उस धुप की याद आती है
जिनसें मैं बचने के लिए इन्ही हवाओं के साये में सोता था,
जिनसें मैं बचने के लिए इन्ही हवाओं के साये में सोता था,
पर आज तो कुछ और ही बात हैं,
जाने क्यों मेरे बालो में गुदगुदी मचा रही हैं,
मुझे ठिठुरने में क्यों मजबूर कर रही हैं
क्या हमेशा मुझे इन्ही में ही अपनी यादे बनानी होगी,
मेरे सीने की गर्म हवाओं से कितनी दुश्मनी निभा रही हैं,
मेरे कानो में इसकी आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही हैं,
शायद यही रुकने का कह रही हो,
पर यह मुझे झल्लाहट के सिवा कुछ ना दे रही हैं
आखिर मुझे यह क्यों सता रही हैं,
रात के अँधेरे में, चाँद के उजाले में आखिर इससे मैं क्यों उलझा हु |
सोच के छोटा सा ख्याल मन में आया
जब दिन में मैं अवलेहना करता हु मैं इनकी पर्दों से,
खिडकियों से इन्हें मैं डराता हु,
सोच के ये मैं वही बैठ गया
और उन ठंडी हवाओं को मैंने सहेज कर रख लिया |
गौरव कुलकर्णी 2sept2011
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