मेरी परिकल्पना की दुनिया में आपका स्वागत है. यदि मेरी कल्पना में कोई सच दिखता है तो इसे मात्र एक सयोंग ना माना जाये...........

शनिवार, सितंबर 24, 2011

समंदर की लहरों से निकलती हैं तरंगे,
तरंगो से निकलती हैं बूंदे,
बूंदों से निकलता हैं एहसास,
एहसास से निकलती हैं एक नई प्यास,
प्यास से निकालता हैं एक असंतोष,
असंतोष से निकलता है अधूरापन
अधूरेपन से निकलती एक तमन्ना 
तमन्ना से निकलती एक नई सोच,
सोच से निकलती हैं आशा
आशा से निकलती हैं किरण
किरणों में समाता हैं सूरज पर बसता हैं समंदर |

7march2011

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