मेरी परिकल्पना की दुनिया में आपका स्वागत है. यदि मेरी कल्पना में कोई सच दिखता है तो इसे मात्र एक सयोंग ना माना जाये...........

शुक्रवार, सितंबर 23, 2011

खो भी जाओ तो यादो को जलाओगे कैसे
तमन्ना में समां के तुम भूला दिए जाओगे कैसे
मुश्किल हैं अलग राह बनाना 
पर मुश्किल कहा मुझे अपना बना रही हैं तुम्हारे जैसे
भीड़ में गुम हो जाऊ तो कह देना गलती 
पर उसी भीड़ से तुम्हे ना देखू  तो गुस्ताखी 
मजबूर कंधो पर क्या क्या रखु रोते-हँसते |

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चलती हुई कश्ती पर भी तुम्हारा नाम लिख दिया था
तुमने भी हस कर कश्ती को सहारा दिया
हदे अभी पार भी नहीं हो पाई थी
कि तुम्हे देखने वाले उसी भौचक मालिक ने देख लिया 

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पाना चाहता था मैं उसे 
डर था मन में इस कदर
की बगैर पाए होश रहेगा की नहीं 
जैसे होठ कह पड़े 
बिना आँख झुकाये उसे देख कर 
जिनकी बांहों की याद समझने में 
मेरे सालो बीत गए ||

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उन पलों में जब मैं ढूंढता था ख़ुशी
याद बनते देख कभी कभी आ जाती थी हँसी
उन भयानक मंजरो से झुझा हुआ मैं 
पता नहीं कब तक लड़ता रहूँगा 
उन्हें भुला पाना इतना आसान होता तो
यादो का कचूम्मर बना देता 
पल पल सिसकिया लेते  आखिर मैंने
पा ही लिया खुशियों का खजाना
भले ही थोड़े समय, पर भरोसा टूटने से बचा लिया ||

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